ये सेमी ग़ज़ल है, मन के भाव है,
मात्राओ का ध्यान नही रखा है।
सौ मन चूहे खा हज चली बिल्ली देखे,
नेता अब जनता की उड़ाते खिल्ली देखे,
भारत माँ की इज्जत अब राम भरोसे,
देश के रहनुमा बन गये शेखचिल्ली देखे।
महंगाई की आग में जल रहा तन बदन,
जनता ने सीने पे रखी बर्फ की सिल्ली देखे।
दो वक्त की रोटी भी मुशिकल से नसीब,
बेशक बहुत दूर हो गई अब तो दिल्ली देखे।
सबर की ताकत अब तो खत्म होती जा रही,
"रैना"को इंतजार कब उखड़े गी किल्ली देखे। .."रैना"
मात्राओ का ध्यान नही रखा है।
सौ मन चूहे खा हज चली बिल्ली देखे,
नेता अब जनता की उड़ाते खिल्ली देखे,
भारत माँ की इज्जत अब राम भरोसे,
देश के रहनुमा बन गये शेखचिल्ली देखे।
महंगाई की आग में जल रहा तन बदन,
जनता ने सीने पे रखी बर्फ की सिल्ली देखे।
दो वक्त की रोटी भी मुशिकल से नसीब,
बेशक बहुत दूर हो गई अब तो दिल्ली देखे।
सबर की ताकत अब तो खत्म होती जा रही,
"रैना"को इंतजार कब उखड़े गी किल्ली देखे। .."रैना"
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