दोस्तों के नाम ग़ज़ल
जीने की सजा दे गई,
मौत फिर दगा दे गई।
आग बुझ गई इश्क की,
याद फिर हवा दे गई।
गम मुझे नही छू सका,
मेरी मां दुआ दे गई ।
कब नसीब थे ये मिरे,
बन्दगी सिला दे गई।
खुशनसीब हम हुये,
फूल वो खिला दे गई । रैना"
जीने की सजा दे गई,
मौत फिर दगा दे गई।
आग बुझ गई इश्क की,
याद फिर हवा दे गई।
गम मुझे नही छू सका,
मेरी मां दुआ दे गई ।
कब नसीब थे ये मिरे,
बन्दगी सिला दे गई।
खुशनसीब हम हुये,
फूल वो खिला दे गई । रैना"
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