दोस्तो छोटी बहर कि गजल
जीने की सजा दे गई,
मौत फिर दगा दे गई।
ये ख़ुशी गिला भी मुझे
बेवफा वफा दे गई।
आग बुझ गई इश्क की,
कोन फिर हवा दे गई।
ये गिला बराबर रहा ,
जिंदगी कजा दे गई ।
गम मुझे नही छू सका,
मेरी मां दुआ दे गई ।
कब नसीब थे ये मिरे,
बंदगी सिला दे गई।
खुशनसीब गुमनाम हे,
फूल वो खिला दे गई । राजेंद्र गुमनाम
जीने की सजा दे गई,
मौत फिर दगा दे गई।
ये ख़ुशी गिला भी मुझे
बेवफा वफा दे गई।
आग बुझ गई इश्क की,
कोन फिर हवा दे गई।
ये गिला बराबर रहा ,
जिंदगी कजा दे गई ।
गम मुझे नही छू सका,
मेरी मां दुआ दे गई ।
कब नसीब थे ये मिरे,
बंदगी सिला दे गई।
खुशनसीब गुमनाम हे,
फूल वो खिला दे गई । राजेंद्र गुमनाम
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