Tuesday, September 3, 2013

wqt kat jaye

गर वक्त कटे आराम से और क्या चाहिये,
हो प्रीत उसके नाम से और क्या चाहिये।
छलकते पैमानों ने बेचैन ही कर दिया,
जाम टकराये जाम से और क्या चाहिये।
गर बदनाम हो गये तो हमें कोई रंज नही,
है हमें मतलब नाम से और क्या चाहिये।
चश्म-ए- मय ने रिन्द दीवाना बना दिया 
हम तो गये अब काम से और क्या चाहिये।
मदहोशी के आलम में तो जीना कमाल है,
हम मस्ती में हुये तमाम और क्या चाहिये।
मां रहमत है तेरी बरसे मोती बन अल्फाज,
"गुमनाम हुआ सरेआम और क्या चाहिये। राजेन्द्र रैना गुमनाम" 

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