Tuesday, September 17, 2013

dahkte angare

दोस्तों इक रचना आप के लिए 

दहकते अंगारे क्यों हाथों में उठाता है,
मेरे दोस्त इश्क का आग से नाता है। 
देखो ये सच इश्क क़ुरबानी मांगता,
मिट जाती शमा परवाना जल जाता है। 
आशिक की किस्मत में जुदाई तन्हाई,
मिलन का सुनहरी वक्त कभी न आता है।
पैसे की मंडी में अब इश्क भी तिजारत,
गरीब आशिक ख्वाबों के महल बनाता है। 
हुस्न को न फुरसत इश्क भी मसरूफ है,
आंख कही और दिल इधर उधर जाता है।
महंगाई ने 'रैना" कमर तोड़ के ही रख दी, 
आम आदमी क्या करे आंसू ही बहाता है। राजेन्द्र रैना"गुमनाम"

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