इक और ग़ज़ल बहर
2+1+2+2 2 2+1+2+2
चेहरे पे मुस्कान रखते,
दर्द दिल में तूफान रखते।
छोड़ कर डर वो बेवजह का,
हम हथेली पे जान रखते।
यूं शहर में तो दबदबा है,
अलग अपनी पहचान रखते।
शान अपनी भी कम नही है,
दूसरों का भी मान रखते।
बोलता कम ही ठग मसीहा,
ध्यान सारा दरबान रखते।
मस्त तन मन मदहोश रैना",
छेड़ कर ऐसी तान रखते। राजेन्द्र रैना गुमनाम"
2+1+2+2 2 2+1+2+2
चेहरे पे मुस्कान रखते,
दर्द दिल में तूफान रखते।
छोड़ कर डर वो बेवजह का,
हम हथेली पे जान रखते।
यूं शहर में तो दबदबा है,
अलग अपनी पहचान रखते।
शान अपनी भी कम नही है,
दूसरों का भी मान रखते।
बोलता कम ही ठग मसीहा,
ध्यान सारा दरबान रखते।
मस्त तन मन मदहोश रैना",
छेड़ कर ऐसी तान रखते। राजेन्द्र रैना गुमनाम"
No comments:
Post a Comment