दोस्तों काफी दिनों बाद आप की महफ़िल में
मैं तेरा आशिक दीवाना,अब पागल जैसी हालत है,
मैं सागर से मोती खोजू ,तुझको पाने की हसरत है।
तुझसे शिकवा कैसे कर लू,मैं जीवन जीता डर डर के,
तू सुनता कब मुफलिस की,गम सहना मेरी आदत है।
उजड़ी वीरां इस बस्ती में,कुत्ते भी रोते चुपके से,
बातों को चुप से पी जाना,अब बन्दों की ये फितरत है।
तब भी गांधी की चलती थी,अब भी गांधी ही हावी है,
वो इस नगरी का कब वासी,गांधी से जिसको नफरत है।
दफ्तर में मख्खन मारों का,अब रूतबा काफी ऊंचा है,
जो भी अपना मुख खोले है,आ जाती उसकी शामत है।
मोदी का भाषण सुन के तो,लगता "रैना"कुछ कर लेगा,
वैसे भारत के नेता की,बुझदिल के जैसी हालत है। राजेन्द्र "रैना"गुमनाम
मैं तेरा आशिक दीवाना,अब पागल जैसी हालत है,
मैं सागर से मोती खोजू ,तुझको पाने की हसरत है।
तुझसे शिकवा कैसे कर लू,मैं जीवन जीता डर डर के,
तू सुनता कब मुफलिस की,गम सहना मेरी आदत है।
उजड़ी वीरां इस बस्ती में,कुत्ते भी रोते चुपके से,
बातों को चुप से पी जाना,अब बन्दों की ये फितरत है।
तब भी गांधी की चलती थी,अब भी गांधी ही हावी है,
वो इस नगरी का कब वासी,गांधी से जिसको नफरत है।
दफ्तर में मख्खन मारों का,अब रूतबा काफी ऊंचा है,
जो भी अपना मुख खोले है,आ जाती उसकी शामत है।
मोदी का भाषण सुन के तो,लगता "रैना"कुछ कर लेगा,
वैसे भारत के नेता की,बुझदिल के जैसी हालत है। राजेन्द्र "रैना"गुमनाम
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