हमने उजड़ी बस्ती देखी,
फना होती हस्ती देखी.
हर शै बहुत ही महंगी,
सिर्फ जिन्दगी सस्ती देखी.
गुमां जिसको हो ज्यादा,
उसकी डूबती कश्ती देखी.
उसके आंसू टिप टिप टपके,
जो है ज्यादा हंसती देखी.
आशिक, रिन्द, दीवानों में,
हमने बेइंतहा मस्ती देखी.
सावन के महीने में भी,
हमने आग बरसती देखी.
"रैना"आब की तलाश में,
सागर की माँ भटकती देखी.
राजिंदर "रैना"
Tuesday, September 14, 2010
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