Saturday, January 29, 2011

badla andaj

उसका बदला बदला सा अंदाज लगता है,


मेरे घर का मालिक कुछ नाराज लगता है.

पहले कुछ तो करते थे रिश्ते की शर्म,

मगर अब हर शख्स बेलिहाज लगता है.

इमानदार को तो मुफलिसी ले बैठी,

बेईमान के सिर फिर सजा ताज लगता है.

इश्क ने वक्त के मुताबिक बदले है तेवर,

हुस्न ने भी अब बदला मिजाज लगता है

गैरों को तो अच्छी लगी मेरी कामयाबी,

मगर अपनों को कुछ एतराज लगता है.

उसकी आँखों बयाँ करती महसूस होता,

उसके सीने में दफ़न कोई राज लगता है.

बेशक बदल गये है सारे वक्त के साथ,

मगर"रैना" जैसा कल था वैसा आज लगता है. राजिंदर "रैना"

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