Sunday, February 26, 2012

dip ki tarh

दीप जैसे मुसल्सल जलता रहा,
मैं सूरज न फिर भी ढलता रहा.
मैं सूरज न फिर ...................
कुछ पाया न मैंने सब खो दिया,
दिल में पीड़ा हुई तो मैं रो दिया,
बैठा पछताता हाथ मलता रहा.
मैं सूरज न फिर ................
तूने समझी न मेरी मजबूरियां,
और जान के बढ़ा ली है दूरियां,
मंजिल दूर सही मैं  चलता रहा.
मैं सूरज न फिर ...................
"रैना" वो शाम जब ढल जाएगी,
तुझको तब उसकी याद आएगी,
अब तक खुद को खुद छलता रहा.
मैं सूरज न फिर ..................."रैना"

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