Saturday, May 16, 2015

गम सहा उफ़ न की अक्ल से काम लेते लेते,
आखिरी सांसें गिन रहे हैं तेरा नाम लेते लेते। रैना"

उम्मीदों को जगा के देखा है,
ख्वाबों को सजा के देखा है। 
बहुत ही ऊंचा है आसमान,
पंखों को भी फैला के देखा है।
फसल किस्मत से होती है,
हल बहुत चला के देखा है।
घर में गम घुस ही आये हैं,
हौसला खूब बढ़ा के देखा है। 
वहां भी वीरान मरुस्थल था,
मंजिल पे भी जा के देखा है। 
सफल होना नसीब में न था, 
पसीना तो खूब बहा के देखा है। रैना"

आब की शक्ल में ढलना मुश्किल है,
पत्थर का तो पिघलना मुश्किल है,
झूठ के झाड़ फानूस रोशन हो रहे हैं,
यहां सच का दीप जलना मुश्किल है। रैना" 

हल मुश्किल सवाल नही हुआ करते,
यूं बेवजह ही कमाल नही हुआ करते,
तुम तो बैठ गये रैना"हिम्मत हार कर,
इतनी जल्दी हलाल नही हुआ करते। रैना"


 कौन कमबख्त तुझे दिल से बर्खास्त करेगा,
तुम कच्चे मुलाजिम नही जो नौकरी से निकाल देंगे। रैना"
 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-05-2015) को "धूप छाँव का मेल जिन्दगी" {चर्चा अंक - 1978} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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