अब रिश्ता है तन धन का,
कोई मीत मिले न मन का,
इन्सानों की इस बस्ती में,
कानून चले यहां वन का।
मसीहा को अपनी पड़ी है,
ख्याल न उसको जन का।
माया का हर कोई दीवाना,
हर कोई भूखा है तन का।
कोई मीत मिले न मन का,
इन्सानों की इस बस्ती में,
कानून चले यहां वन का।
मसीहा को अपनी पड़ी है,
ख्याल न उसको जन का।
माया का हर कोई दीवाना,
हर कोई भूखा है तन का।
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