मेरा इक सूफी कलम बताना आप ने बेहतरीन है के नही
इश्क इश्क तू कहता फिरता,
इश्क तो मसला दिलका है,
इश्क तो दिल की गहराइयों में ,
बाजारों में कब मिलता है।
इश्क न थकता,रोता न हँसता,
मांगे इश्क क़ुरबानी,
क़ुरबानी वो दे सकता,
कदर इश्क की जिसने जानी,
जो इतना मंजूर तुझे,
फिर रख दरिया में पैर,
अल्ला खैर करे अल्ला खैर,
मोला खैर करे मोला खैर।......................."रैना"
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