Thursday, April 26, 2012

मेरा एक और सूफी गीत

हम दिल में यार बसाते नही,
 रूह में ही उतारा करते है,
हम उसके सच्चे आशिक है,
यार में रब का नजारा करते है.
यार में रब का नजारा ...........
हम रिन्द दीवाने साकी के,
वो पिलाता और हम पीते है,
ये साँस अमानत है उसकी,
वो कहता तो हम जीते है,
हम उसकी रजा में राजी,
जैसा चाहे गुजारा करते है.
यार में रब का नजारा.............
अपनी तो एक ही हसरत है,
यार सामने हो मैं दीदार करू,
इश्क के दरिया में उतर जाऊ,
फिर टूट के यार से प्यार करू,
यार को खुश करने के लिए,
हम खुद को सवारा करते है.
यार में रब का नजारा..........."रैना'

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