एक और सूफी गीत
हाथों की लकीरे बदल जाती,
जो यार रहबर मिल जाता,
रहती न कोई भी परेशानी,
खिजा का फूल खिल जाता.
हाथों की लकीरें................
मुझे गुमां न होता हस्ती का,
मैं खुद में सिमट के रह जाता,
जो भी गम दुःख ही मिलता
उसकी रहमत समझ सह जाता,
डूबा इश्क की मस्ती में,
चुप तंग गली से निकल जाता.
हाथों की लकीरें......................."रैना"
हाथों की लकीरे बदल जाती,
जो यार रहबर मिल जाता,
रहती न कोई भी परेशानी,
खिजा का फूल खिल जाता.
हाथों की लकीरें................
मुझे गुमां न होता हस्ती का,
मैं खुद में सिमट के रह जाता,
जो भी गम दुःख ही मिलता
उसकी रहमत समझ सह जाता,
डूबा इश्क की मस्ती में,
चुप तंग गली से निकल जाता.
हाथों की लकीरें......................."रैना"
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