समझो और समझाओ
यदि किसी को भ्रम तो ये उसकी गलती है,
वैसे अब भी भारत में गाँधी की ही चलती है.
गाँधी के बिना कुछ भी संभव न बनती बात है,
गाँधी बिन दिन अँधेरे गाँधी संग उजली रात है.
कविता में गाँधी का मतलब पैसा रुपया नोट है,
जिसके कारण इंसान के मन में आया खोट है.
नोट के आगे योदा वीर बहादुर न कोई खली है,
इस वास्ते हर किसी ने धर्म इमान की दी बलि है.
पैसे के लिए आम आदमी कुछ ऊँचा ही चढ़ गया,
पर देश का मसीहा चार कदम और आगे बढ़ गया.
नोट लेकर अधिकतर जनता नेता को देती वोट है.
तभी वो नेता बनते ही कस लेता एकदम लगौट है.
फिर तो एडी चोटी का जोर साँस रोक रोक लगाता है,
पांच वर्षों में तीन पीड़ियों का कोटा पूरा कर जाता है.
इसलिए जनता को पहले अपना मन समझाना होगा,
अपनी वोट की कीमत समझ कर नेता बनाना होगा.
वरना कुछ दिनों की बात वह दिन फिर आ जायेगा,
मेरा भारत देश काले अंग्रेजों का गुलाम हो जाये गा. .............रैना"
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