एक और सूफी गीत,
ओ यार दिलबर पर्दानशी,
दीदार तो तेरा करना है,
दिल पे लगे जो भी जख्म,
प्यार की मरहम से भरना है.
दीदार तेरा ..................
क़यामत में जब कोई न था,
तब तेरा असर तो बाकी था,
मैखाने में न रिन्द कोई,
फिर भी मौजूद साकी था,
मेरी अब तो ये हसरत है,
तेरे क़दमों में सिर धरना है.
दीदार तेरा............................."रैना"
No comments:
Post a Comment