Sunday, September 18, 2011

यहाँ तो सभी अपना ही रोना रोते,
जान देने पर भी लोग खुश नही होते.
जिन पे होता है भरोसा ज्यादा यारों,
मझदार में कश्ती वो ही लोग डुबोते.
हमे दुःख दे कर  नीदें हाराम कर के,
बेवफा हरजाई देखो चैन की नीद सोते.
कभी सोचता हूँ मजबूर तन्हा बैठ कर,,
लखते जिगर भी क्या ऐसे है होते.
ऐसा रोग लगा जिस की नही दवा,
अपनी मिटेगी हस्ती गमों का बोझ ढोते.
"रैना"जिसने भी पकड़ा है दामन उसका,
उसकी रजा में राजी कभी दुखी नही होते. "रैना"

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