दोस्तों के नाम इक ग़ज़ल कैसी है
फैसला आप के हाथ
बुझते शोलों को क्यों हवा दे गया,
दोस्त जीने की फिर दुआ दे गया।
कसमें वादें दावें हवा हो गये,
वो अपना हमदम ही दगा दे गया।
खिलती थी जिसको देख आंखें मिरी,
आँखें रोती अब वो सजा दे गया।
मिल जाता तो हम पूछ लेते यही,
जीने की हसरत क्यों कजा दे गया।
"रैना"की हस्ती भी मिटे गी कभी,
अन्धेरा उजाले का पता दे गया।"रैना"
कोई अकेला नही इस जहान में,
बेशक वो हरदम साथ रहता है।"रैना"
फैसला आप के हाथ
बुझते शोलों को क्यों हवा दे गया,
दोस्त जीने की फिर दुआ दे गया।
कसमें वादें दावें हवा हो गये,
वो अपना हमदम ही दगा दे गया।
खिलती थी जिसको देख आंखें मिरी,
आँखें रोती अब वो सजा दे गया।
मिल जाता तो हम पूछ लेते यही,
जीने की हसरत क्यों कजा दे गया।
"रैना"की हस्ती भी मिटे गी कभी,
अन्धेरा उजाले का पता दे गया।"रैना"
कोई अकेला नही इस जहान में,
बेशक वो हरदम साथ रहता है।"रैना"
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार...!