Sunday, May 5, 2013

bujhte shaoleo

दोस्तों के नाम इक ग़ज़ल कैसी है
फैसला आप के हाथ

बुझते शोलों को क्यों हवा दे गया,
दोस्त जीने की फिर दुआ दे गया।
कसमें वादें दावें हवा हो गये,
वो अपना हमदम ही दगा दे गया।
खिलती थी जिसको देख आंखें मिरी,
आँखें रोती अब वो सजा दे गया।
मिल जाता तो हम पूछ लेते यही,
जीने की हसरत क्यों कजा दे गया।
"रैना"की हस्ती भी मिटे गी कभी,
अन्धेरा उजाले का पता दे गया।"रैना"


कोई अकेला नही इस जहान में,
बेशक वो हरदम साथ रहता है।"रैना"



1 comment:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
    साझा करने के लिए आभार...!

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