Sunday, August 25, 2013

rhne ke liye

रहने के लिये कोई घर न मिला,
मुश्किल राहें हमसफर न मिला।
परख लिए हमने पंडित मोलवी,
उनकी दुआओं में असर न मिला।
आती धूप रोके सामने खड़ा होकर,
मुझको मां सा कोई शजर न मिला।
वक्त की मार से डरे सहमे हुये लोग,
गुल सा खिला कोई बशर न मिला।
लम्बी तान के सो रहे हैं मस्ती में,
देश का मसीहा भी बाखबर न मिला।
"रैना" से इस कदर आंखें फेरने वाले,
भटक रहा तू तुझे भी सबर न मिला। राजेन्द्र रैना गुमनाम"
सुप्रभात के साथ इक रचना जय जय मां   

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