Saturday, March 31, 2012

aprail ful ke din

अप्रैलफूल के दिन
 प्रवण दा ने डुगडुगी बजाई,
सामने खड़ी हो गई मंहगाई.
बोली बताओ जी प्रवण भाई,
हमारी याद क्यों है आई,
हमने तो पहले ही ऊँची छलांग लगाई,
जनता तो पहले ही बहुत घबराई.
ओहो मुझे याद आई,
अप्रैलफूल मना रहा मेरा भाई.
प्रवण दा आगे से बोले दुहाई है दुहाई,
हमने कभी अप्रैलफूल न मनाया है,
सच में हमने तेरा कद और ऊँचा बढ़ाया है.
हमने तेरे साथ दिल लगाया है,
जनता क्या जनता तो रोती है,
जनता तो किसी की न होती है.
इसलिए तू मत घबरा,
बिना सोचे समझे ऊपर चढ़ती जा.
तुझे पता है 2014 के चुनाव आने वाले है,
हमें तय करना है हम जाने वाले है....हाँ हाँ हाँ अप्रैलफूल........"रैना"

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