Friday, March 2, 2012

shanti ki tlash me

शांति की तलाश में भटकता प्राणी,
निरंतर आशांति की और बढ़ रहा है,
कहां है शांति किधर है शांति,
उधर न इधर है शांति.
शांति दिल्ली न जलांधर है,
शांति मन के अन्दर है,
मन तो अमृत कुंड समंदर है.
जो इस समंदर में गोता लगता है,
उसको तो मोती मिल जाता है.
नही तो हम ताउम्र सीपियाँ इकठ्ठी करते रह जाते है,
रोते रोते आये,रोते रहे और रोते रोते ही जाते है.
आओ मोती तलाश करे........................................................"रैना"

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