Monday, September 17, 2012

bal kvita

बाल कविता .......बाल श्रमिक
मेरे पढ़ने खेलने के दिन???
मैं एक होटल में झूठे बर्तन साफ कर बिता रहा हूँ,
छोटा हूँ फिर भी घर का बोझ अपने कन्धों उठा रहा हूँ।
फुटबाल पतंग बैट बाल कुछ न मेरे पास है,
देखो फिर भी मेरा मन न बिलकुल उदास है।
एकदम शांत हूँ मैं मेरी कोई चाह न प्यास है,
मगर मुझे फिर भी उस पे पूरा विशवास है।
मेरा मालिक बात बात पे मुझे डांट पिलाता है,
कभी कभी मुझ पर हाथ पैर भी चलाता है।
मगर कभी पास बैठा कर समझाता है,
अरे बच्चे जो तू अब काम में ध्यान लगाएगा,
तो बड़ा होकर किसी होटल का बैरा बन जाएगा।
मैं इसी आस के दम से जी रहा हूँ,
हर अपमान को अमृत समझ पी रहा हूँ।
मैं इस से ज्यादा सोच भी नही सकता।
बाल श्रमिक जो ठहरा । ...."रैना"

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