Friday, September 21, 2012

ham tarsa rhe haye tdf rhe

मेरे प्रिय दोस्तों ये ग़ज़ल मेरे जिगर का टुकड़ा है,
 आप की खिदमत में पेश करता हु।

तरस रहे हाये तड़फ रहे तेरे दीदार नही होते,
औरों पे नजरे कर्म करे हम पे उपकार नही होते।
मेरे दिल पे क्या गुजर रही लब न खुले है बेहतर यही,
कैसे कह दू दावे से धोखेबाज तो यार नही होते।
इश्क इबादत यार करे बेदर्द जमाना क्या जाने है,
मौत नही आती तब तक  जब तक नैना चार नही होते।
तुझसे मिलने की हसरत जीने का मकसद अरमान यही,
सच तेरी रहमत के बिन तो गुलशन गुलजार नही होते।
रैना" जो तेरा आशिक था अब रिंद हुआ तू है साकी,
भर भर के जाम पिला हमको जब तक उस पार नही होते। ...."रैना"


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