मेरी एक ग़ज़ल दोस्तों के नजर है
रूख से जुल्फे झटक हटाते जैसे,
हमको दिलसे तुम न हटाना ऐसे।
तेरा मेरा रिश्ता कुछ ऐसा है,
सांस का जिस्म से है रिश्ता जैसे।
फिर भी बस्ती में अपना रूतबा है,
है मुफ्लिश अपने पास नही पैसे।
खुशदिल हम उल्फत के सौदागर है,
"रैना" के यार नही ऐसे वैसे।।।।।।।।।"रैना"
रूख से जुल्फे झटक हटाते जैसे,
हमको दिलसे तुम न हटाना ऐसे।
तेरा मेरा रिश्ता कुछ ऐसा है,
सांस का जिस्म से है रिश्ता जैसे।
फिर भी बस्ती में अपना रूतबा है,
है मुफ्लिश अपने पास नही पैसे।
खुशदिल हम उल्फत के सौदागर है,
"रैना" के यार नही ऐसे वैसे।।।।।।।।।"रैना"
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