दोस्तों पेशे खिदमत है,
जिन्दगी से क्यों गिला है,
फूल किस्मत से खिला है।
ये हवा की है शरारत,
जो पत्ता कोई हिला है।
गम मिले बदले वफा के,
अब वफा का ये सिला है।
क्यों गिला उससे करे हम,
दाग उल्फत में मिला है।
फर्ज अपना भूलते हम,
दौर कुछ ऐसा चला है।
काश "रैना" जान जाता,
अंत भले का हो भला है। "रैना"
जिन्दगी से क्यों गिला है,
फूल किस्मत से खिला है।
ये हवा की है शरारत,
जो पत्ता कोई हिला है।
गम मिले बदले वफा के,
अब वफा का ये सिला है।
क्यों गिला उससे करे हम,
दाग उल्फत में मिला है।
फर्ज अपना भूलते हम,
दौर कुछ ऐसा चला है।
काश "रैना" जान जाता,
अंत भले का हो भला है। "रैना"
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