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mere man
Monday, January 28, 2013
kash
काश हम उनसे मिले होते,
फूल दिल के फिर खिले होते।
यूं गिला करते नही उससे,
होठ मेरे फिर सिले होते। "रैना"
1 comment:
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
January 28, 2013 at 3:48 AM
बहुत सुन्दर रचना!
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बहुत सुन्दर रचना!
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