काफी साल पहले लिखी रचना।
आओ गाँव चले जी
मस्तियां करती बेसुमार कुए पर,
भर रही पानी जवां नार कुएं पर।
हुस्न के जलवें है सुगंध महकती,
आ के ठहर गई है बहार कुएं पर।
उठ जाती कभी नजरें झुकी झुकी,
न जाने किस का इंतजार कुएं पर।
जब से उनके घरों में नलके लग गये,
आशिक अब खड़े हैं बेजार कुएं पर।
पानी भरने की मस्त अदा देख लू,
"रैना" कहे आ जा इक बार कुएं पर। "रैना"
आओ गाँव चले जी
मस्तियां करती बेसुमार कुए पर,
भर रही पानी जवां नार कुएं पर।
हुस्न के जलवें है सुगंध महकती,
आ के ठहर गई है बहार कुएं पर।
उठ जाती कभी नजरें झुकी झुकी,
न जाने किस का इंतजार कुएं पर।
जब से उनके घरों में नलके लग गये,
आशिक अब खड़े हैं बेजार कुएं पर।
पानी भरने की मस्त अदा देख लू,
"रैना" कहे आ जा इक बार कुएं पर। "रैना"
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