Saturday, January 14, 2012

aaj ke is daur

आज के इस दौर में बढ़ रही है मुश्किलें,
कुछ कहे खता हुई चुप रहे तो दिल जले,
बेशक घर जन्नत घर बिना आराम नही,
ढलती शाम देख कर परिन्दें भी घर चले.
शोर सुन के पत्तों का फूल भी सहम गये,
दिन चैन से गुजरा हगामा बरपा शाम ढले.
"रैना" कामयाबी को दुआओं की दरकार है,
 उम्मीदे मंजिल नही दिल में जो नफरत पले. "रैना" 

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