अक्सर सोचते मगर समझ नही आई,
हमसे क्या खता हुई जो जिन्दगी पाई.
आखिरी वक्त तक हिस्सों में बंटना जारी,
देखो फिर भी इत्तिफ़ाक न रखती खुदाई.
और किसी से भला कैसा गिला शिकवा,
अपना लखते जिगर ही करता बेवफाई.
अच्छा अब चलो चलते अपने घर "रैना"
ये फरेबी दुनिया तो हमें रास नही आई."रैना"
हमसे क्या खता हुई जो जिन्दगी पाई.
आखिरी वक्त तक हिस्सों में बंटना जारी,
देखो फिर भी इत्तिफ़ाक न रखती खुदाई.
और किसी से भला कैसा गिला शिकवा,
अपना लखते जिगर ही करता बेवफाई.
अच्छा अब चलो चलते अपने घर "रैना"
ये फरेबी दुनिया तो हमें रास नही आई."रैना"
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