Monday, October 3, 2011

aab

हमने उजड़ी बस्ती देखी,
फना होती हस्ती  देखी.
हर शै बहुत ही महंगी,
सिर्फ जिंदगी सस्ती देखी.
महंगाई ने सब को मारा,
नागिन बन के डसती देखी.
सावन के महीने में भी,
हमने आग बरसती देखी.
गुमां जिसको होता ज्यादा,
उसकी डूबती कश्ती देखी.
आशिक, रिन्द, दीवानों में,
हमने बेइंतहा मस्ती देखी.
सावन के महीने में भी,
गजब की आग बरसती देखी.
"रैना"आब की तलाश में,
सागर की माँ भटकती देखी.
राजिंदर शर्मा  "रैना"

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