Saturday, October 1, 2011

sahara

माँ की भेंट 
शेर 
इक मुद्दत से परेशान हूँ, तेरे दर का पता नही मिलता,
मैं अब जाऊ तो कहां जाऊ,तेरे घर का पता नही मिलता

जो मइया तेरा सहारा मिल जाये,
डूबते को किनारा मिल जाये.
मिट जायेगे सारे रंजों गम,
हर हसीं वो नजारा मिल जाये.
जो मइया तेरा  -----------
फिर राहों में  न भटकू गा,
न दुनिया की आँखों में खटकूगा,
सुख चैन से कट जाये जिन्दगी,
न चिन्ता  की फांसी लटकू गा.
जो मइया तेरा  -----------
कोई  संगी है न साथी है,
इक तेरा भरोसा बाकी है,
अब लाज मेरी भी रख लेना,
तुने दीनो की लाज तो राखी है. 
जो मइया तेरा-----------"रैना"
जय माँ अम्बे---------------------------





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