बेशक अब तो शहर का मंजर अजीब है,
खुशनसीब को ही चैन की नींद नसीब है,
दरियादिली के दावे तो करते बहुत मगर,
हकीकत से कोसों दूर सारा शहर गरीब है.
बेशक आ गया अब नीयत में बहुत फर्क,
दिल के करीब रहने वाला ही बने रकीब है.
"रैना"को उस जलवागर से यही है गिला,
नजर क्यों नही आता जब रहता करीब है."रैना"
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