Tuesday, October 25, 2011

meri biwi

दीवाली त्योहार के मोके पर खास पेशकश हास्य कविता.

आज प्रात ही प्रात मेरी बीवी सातवे आसमान पर चढ़ गई,
मुझ से मखातिव हो मेरे तरफ इशारा कर इक शेर जड़ गई.
कहने लगी वह री मेरी किस्मत,
मुझे तो बस यही गम है,
जहाँ मेरी नावं डूबी, वहां पानी बहुत कम है.
बीवी का शेर सुन मुझे गुस्सा बहुत आया,
मैं दहाड़ा,चिलाया,हाथ उठाया, कदम आगे बढ़ाया,
मगर अब महिलाओ की सुरक्षा के बने कानून का ध्यान कर,
बैक गेयर ही लगाया,इसी में मेरी भलाई थी.
मैंने फिर बीवी को आगे से शेर ही सुनाया,
मैंने फ़रमाया
वैसे तो अपना कोई भी सानी नही है,
मगर जहाँ मेरी नावं डूबी वहां पानी नही.
इतना सुन मेरी बीवी घबराई मेरे पास आई,
कहने लगी और बात तो समझ आई,
मगर तुने बिना पानी के नावं है कैसे डूबाइ.
मैंने कहा
जिस देश में प्रधान मंत्री अपनी न चला सकता हो,
सोनिया गाँधी के पूछे बिना पूंछ न हिला सकता हो,
जहाँ हर तरफ भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार हो,
त्राहित्राही हर तरफ मंची हाहाकार हो,
सिर्फ महंगाई का बोलबाला हो,
बेईमान की जय जयकार,इमानदार का मुहु काला हो,  
बैसाखियों पे टिकी सरकार हो, प्रधानमंत्री कमजोर लाचार हो,
जहाँ नेता चारा खाते हो, वोट की खातिर जनता को लड़वाते हो,
जहाँ वक्ता बाबा कहलाते हो, जनता को बहकाते हो,
जहाँ धर्म के नाम पर झगड़े हो, बात बात पे रगड़े हो,
वहां क्या नही हो सकता.
इस देश में तो घोटाले ही बड़े है,
तुम इक किश्ती की बात करती हो,
यहाँ तो बड़े बड़े जहाज बिना पानी के डूबे खड़े है.
इसलिए ज्यादा शोर न मचा,
चार दिन की जिन्दगी है हंस खेल के बिता,-------------- "रैना"



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