Saturday, March 2, 2013

ai gunahgar

दोस्तों ग़ज़ल का रंग देखे

मैं खतावार मुजरिम सजा दे मुझे,
माफ़ मत कर खता तू कजा दे मुझे।
जिंदगी से करे हम गिला क्यों भला,
कब वफा इस शहर में दगा दे मुझे।
मैं भटकता रहा घर तेरा खोजता,
कर रहम सुन दुआ अब पता दे मुझे।
मैं तिरा हो गया अब मिरा तू सनम
यार एक आध जलवा दिखा दे मुझे।
हम अभी जिन्दगी के तलबगार है,
हो सके तो अजल से बचा दे मुझे।
रात भर देखते ख्वाब कब हो मिलन,
प्यार महबूब "रैना" मिला दे मुझे।।।।"रैना"

No comments:

Post a Comment