इक और व्यंग्य कविता पसंद आई के नही बताना जी
इस बस्ती में भेडियें रहते उनको बाहर निकाले कौन,
सब के घर अब शीशे के है पत्थर क्यों उछाले कौन।
इकलौते बेटे नें माँ बाप को ही घर से निकाल दिया,
वृद्धआश्रम में भी गद्दारी है बुजुर्गों को सम्भाले कौन।
नामी गुंडे इश्तयारी मुजरिम देखो जेल मंत्री बन बैठे,
चोरों का जब राज हो गया देखे गा अब तालें कौन।
महंगाई पे निरन्तर चढ़े जवानी ऊंचा उंचा कूद रही,
सारथी जब अनजान हुआ घोड़ी को सम्भाले कौन।
नेता ही अब गलत नही जनता भी गल्ती करती है,
जब पैसे लेकर वोट दोगे,फिर देगा तुम्हे उजाले कौन।
सुरक्षित नही अब बेटी दहेज की बली चढ़ाई जाती,
रक्षक ही जब भक्षक है फिर बेटी को बचा ले कौन।
"रैना" दिल को परेशान न कर खुद को हैरान न कर,
उसकी मर्जी से सब होता अपनी मर्जी से खा ले कौन।"रैना"
इस बस्ती में भेडियें रहते उनको बाहर निकाले कौन,
सब के घर अब शीशे के है पत्थर क्यों उछाले कौन।
इकलौते बेटे नें माँ बाप को ही घर से निकाल दिया,
वृद्धआश्रम में भी गद्दारी है बुजुर्गों को सम्भाले कौन।
नामी गुंडे इश्तयारी मुजरिम देखो जेल मंत्री बन बैठे,
चोरों का जब राज हो गया देखे गा अब तालें कौन।
महंगाई पे निरन्तर चढ़े जवानी ऊंचा उंचा कूद रही,
सारथी जब अनजान हुआ घोड़ी को सम्भाले कौन।
नेता ही अब गलत नही जनता भी गल्ती करती है,
जब पैसे लेकर वोट दोगे,फिर देगा तुम्हे उजाले कौन।
सुरक्षित नही अब बेटी दहेज की बली चढ़ाई जाती,
रक्षक ही जब भक्षक है फिर बेटी को बचा ले कौन।
"रैना" दिल को परेशान न कर खुद को हैरान न कर,
उसकी मर्जी से सब होता अपनी मर्जी से खा ले कौन।"रैना"
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