Tuesday, March 5, 2013

दोस्तों मेरी एक और व्यंग्य कविता की चार लाइन
आप की महफ़िल में हाजिर हैं तव्वजो चाहू गा।

इस बस्ती में भेडिये रहते उनको बाहर निकाले कौन,
सब के घर अब शीशे के हैं पत्थर क्यों उछाले कौन।
इकलौते बेटे ने बूढ़े माँ बाप को घर से निकाल दिया,
वृद्धआश्रम में भी गद्दारी है,बुजुर्गों को सम्भाले कौन। "रैना"

कुछ बोलते क्यों नही,

हम फ़िदा हो गये इक तुझी पे सनम,

क्यों सजा देते नही हो,
व्यंग्य कविता

चम्मचों की मस्ती मौज है खाते खूब मलाई,
मौका देख झुक जाना खीर मिलती बनी बनाई।
राजनीति में तो चम्मचा गिरी का ही कमाल है,
अब बेशक बने वो मंत्री जिसने भी पूंछ हिलाई।
सच ज्ञान विज्ञान तो धरे का धरा ही रह गया,
उसको मिले उपाधि जिसकी डुप्लीकेट पढ़ाई।"रैना"


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