दोस्तों शायद आप को पसंद आये मेरी ये ग़ज़ल
दूर तक जाना सभी को जानता है आदमी,
ये नगर तेरा नही कब मानता है आदमी।
रास्ता कब ढूंढता है बेफिकर ही घूमता,
ख़ाक गलियों की सदा से छानता है आदमी।
हादसें अक्सर हुये हैं जिन्दगी के मोड़ पर,
कामयाबी तब मिले जब ठानता है आदमी।
आदमी वो बन्दगी करता खुदा की हर घड़ी,
दरद जो भी गैर का पहचानता है आदमी।
टूटता तारा बताता राज जीवन का सभी,
किस लिये ये अहम फिर पालता है आदमी।"रैना"
दूर तक जाना सभी को जानता है आदमी,
ये नगर तेरा नही कब मानता है आदमी।
रास्ता कब ढूंढता है बेफिकर ही घूमता,
ख़ाक गलियों की सदा से छानता है आदमी।
हादसें अक्सर हुये हैं जिन्दगी के मोड़ पर,
कामयाबी तब मिले जब ठानता है आदमी।
आदमी वो बन्दगी करता खुदा की हर घड़ी,
दरद जो भी गैर का पहचानता है आदमी।
टूटता तारा बताता राज जीवन का सभी,
किस लिये ये अहम फिर पालता है आदमी।"रैना"
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