देखते हैं दोस्तों ये कविता
आप के दिल के करीब से गुजरी के नही,
सोचा नही समझा सीखा मर मर के जीना,
साहिल पे आया न मझदार अटका सफीना।
यूं कहने को ही लोग अब जी रहे जिन्दगी,
सही मायनों में जीने का आया नही करीना।
नशे ने बरबाद कर दिया इश्क का जीवन,
फैशन में डूबी अब सादगी भूल गई हसीना।
बेशक हम सब चैन की नींद मजे में सो रहे,
सीमा पर मुस्तैद खड़े जवान तान के सीना।
फ़िलहाल खो चुके है वो पहचान भी अपनी,
खूब सजा करते थे जो कभी बाजार मीना।
भूल कर भी मयखाने में पैर तू मत रखना,
"रैना"तू निसंकोच जी भर जामे वतन पीना। "रैना"
आप के दिल के करीब से गुजरी के नही,
सोचा नही समझा सीखा मर मर के जीना,
साहिल पे आया न मझदार अटका सफीना।
यूं कहने को ही लोग अब जी रहे जिन्दगी,
सही मायनों में जीने का आया नही करीना।
नशे ने बरबाद कर दिया इश्क का जीवन,
फैशन में डूबी अब सादगी भूल गई हसीना।
बेशक हम सब चैन की नींद मजे में सो रहे,
सीमा पर मुस्तैद खड़े जवान तान के सीना।
फ़िलहाल खो चुके है वो पहचान भी अपनी,
खूब सजा करते थे जो कभी बाजार मीना।
भूल कर भी मयखाने में पैर तू मत रखना,
"रैना"तू निसंकोच जी भर जामे वतन पीना। "रैना"
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