प्यार में तो लोग अक्सर मचल ही जाते है,
मगर आशिक कब सड़क पर ठेला लगाते है.
फिर रांझे कब महबूब को चन्ने की दाल खिलाते है,
वो उसे अपना मास खिलाते जिगर का खून पिलाते है.
तभी तो भाजी वाले नही सोहनी के महिवाल कहलाते है.
मगर सच्चे आशिक महबूब के बदन को न हाथ लगाते है,
ये सच दिल्लगी करने वालो को हुस्न वाले अंगूठा दिखाते है. "रैना"
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