वैसे कहने को बड़ा ही विद्यावान है,
मगर हर घर का बिखरा समान है.
आज के इन्सान को पैसे की हवस,
चंद सिक्को के लिए होता बेईमान है.
सच की दुकान अब बंद हो गई है,
खूब चल रही देखो झूठ की दुकान है.
वैष्णों माँ के दर पे चढ़ाता है चढ़ावे,
अपनी बूढ़ी माँ का करता अपमान है.
बेशक"रैना"ने छोड़ी न इमां की डगर,
वैसे हरपल रहता बहुत ही परेशान है..........."रैना"
मगर हर घर का बिखरा समान है.
आज के इन्सान को पैसे की हवस,
चंद सिक्को के लिए होता बेईमान है.
सच की दुकान अब बंद हो गई है,
खूब चल रही देखो झूठ की दुकान है.
वैष्णों माँ के दर पे चढ़ाता है चढ़ावे,
अपनी बूढ़ी माँ का करता अपमान है.
बेशक"रैना"ने छोड़ी न इमां की डगर,
वैसे हरपल रहता बहुत ही परेशान है..........."रैना"
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