Friday, December 2, 2011

sone ki koi sift nhi

 मेरे मालिक की तारीफ कुछ ऐसे भी
सोने की सिफ्त नही,
ना ही सिफ्त सुनार की,
तू खुद ही सिफ्त सारी,
रंगत मस्त बहार की. 
अंग तेरे देख महकते.,
गहना खुद पे इतराये,
नैना तेरे तन को छू के
कांच भी हीरा हो जाये.
नैना तेरे तन को छू के,
कांच भी हीरा हो.........
खोले जुल्फे खुशबू बिखरे,
हवा बहार की चल जाती,
सुर्ख लबों की देख के लाली,
लाल की लाली ढल जाती,
हुस्न मणी को देख के फिर तो,
नाग मणी भी घबराये.
नैना तेरे तन को छू के,
कांच भी हीरा हो........."रैना"

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