Tuesday, April 2, 2013

aadmi se aadmi

लो जी लिख दी इक और कविता

आदमी से आदमी अब कतराता है,
भाई भी अब दुश्मन नजर आता है।
उस आईने को हम तो झट तोड़ देते,
जो भी हमें बिल्कुल सच दिखाता है।
इन वक्ताओं को गुरु बना दिया हमने,
जिनका सूरा सुन्दरी माया से नाता है।
बेशक वो मसीहा चुन लिया है हमने,
जो माँ की ही आबरू को बेच खाता है।
देखो इन्सान ने बदल ली फितरत,
दुसरे के घर सिर्फ आग ही लगाता है।
उससे हम अक्सर करते है शिकायत,
मगर वो जैसी ढपली वैसे राग गाता है।
"रैना"क्या तू भी उस पर करता अमल,
दोस्तों को जो इतने उपदेश सुनाता है।"रैना"


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