चीख चीख के इक मुद्दत से हवायें ये कहती हैं,
बेटियां तो सदियों से दुःख तकलीफें सहती है।
कलियों को मसलता कोई फूल को तोड़ देता है,
इन बदनसीबों को कोई अँधेरी राह पे छोड़ देता है।
बेशक कहने को हमने सख्त कानून बनाया है,
मगर बेचारी बेटी ने कभी भी इंसाफ न पाया है।
कुलटा बदचलन का बस्ती ने ये शौर मचाया है,
कोई न सोचता इस हाल में किसने पहुचाया है।
आखिर ऐसा कानून अब बनाया क्यों नही जाता,
इन दरिंदों को फांसी पे लटकाया क्यों नही जाता।"रैना"
चाहे बेचारे गम के मारे टूटे तारें हैं ये पति,
मगर औरत के बिना नही आदमी की गति।"रैना"
बेटियां तो सदियों से दुःख तकलीफें सहती है।
कलियों को मसलता कोई फूल को तोड़ देता है,
इन बदनसीबों को कोई अँधेरी राह पे छोड़ देता है।
बेशक कहने को हमने सख्त कानून बनाया है,
मगर बेचारी बेटी ने कभी भी इंसाफ न पाया है।
कुलटा बदचलन का बस्ती ने ये शौर मचाया है,
कोई न सोचता इस हाल में किसने पहुचाया है।
आखिर ऐसा कानून अब बनाया क्यों नही जाता,
इन दरिंदों को फांसी पे लटकाया क्यों नही जाता।"रैना"
चाहे बेचारे गम के मारे टूटे तारें हैं ये पति,
मगर औरत के बिना नही आदमी की गति।"रैना"
बहुत मार्मिक प्रस्तुति...!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार...!