एक सूफी रचना आप की खिदमत में
इक हम ही नही आशिक तेरे,
सारे लोग ही शायरी करते हैं,
महफ़िल में तेरे हुस्न के चर्चे,
सारे बुत तेरा ही दम भरते है।
तेरी वफा का जवाब नही कोई,
पाक मोहब्बत करे दिलदारा,
बेवफा हम चोर हमारे दिल में,
प्यार न करते तुझसे डरते हैं।
क्या खूब है ये तेरी कारागरी,
मिट्टी के बुत चलते फिरते,
तेरी इनायत छम छम बरसे,
चिरागे उल्फत बुझते जलते है।
क्या खूब तेरे जलवें कली फूटे,
फूल खिलते फिर फल लगते,
बहार,खिजा सुखा कभी पानी,
ये सिलसिले यूं ही चलते हैं।
दिन निकला दोपहर शाम ढली,
जिन्दगी बटी तीन हिस्सों में,
"रैना"औरों की कमी देखते रहे,
खुद से न कभी भी लड़ते हैं।"रैना"
इक हम ही नही आशिक तेरे,
सारे लोग ही शायरी करते हैं,
महफ़िल में तेरे हुस्न के चर्चे,
सारे बुत तेरा ही दम भरते है।
तेरी वफा का जवाब नही कोई,
पाक मोहब्बत करे दिलदारा,
बेवफा हम चोर हमारे दिल में,
प्यार न करते तुझसे डरते हैं।
क्या खूब है ये तेरी कारागरी,
मिट्टी के बुत चलते फिरते,
तेरी इनायत छम छम बरसे,
चिरागे उल्फत बुझते जलते है।
क्या खूब तेरे जलवें कली फूटे,
फूल खिलते फिर फल लगते,
बहार,खिजा सुखा कभी पानी,
ये सिलसिले यूं ही चलते हैं।
दिन निकला दोपहर शाम ढली,
जिन्दगी बटी तीन हिस्सों में,
"रैना"औरों की कमी देखते रहे,
खुद से न कभी भी लड़ते हैं।"रैना"
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