ये रही ग़ज़ल आप की महफ़िल में
दोस्तों ग़ज़ल में काफिया रदीफ़ का
ध्यान रखना ही काफी नही है,
मात्रा और बहर का भी ध्यान रखना होता है,
देख तुझको सोचता रहता,
दिल मिरा तो रोकता रहता।
खेल मत तू इश्क की बाजी,
हमनवा तो टोकता रहता।
वो नजर आता नही मुझको,
कौन मुझ में बोलता रहता।
तेरे घर का क्या पता अक्सर,
मैं हवा से पूछता रहता।
कुछ करे तो क्या यही सोचे,
खून अक्सर खोलता रहता।
देखता कब भार मैं अपना,
हर किसी को तोलता रहता।"रैना"
दोस्तों ग़ज़ल में काफिया रदीफ़ का
ध्यान रखना ही काफी नही है,
मात्रा और बहर का भी ध्यान रखना होता है,
देख तुझको सोचता रहता,
दिल मिरा तो रोकता रहता।
खेल मत तू इश्क की बाजी,
हमनवा तो टोकता रहता।
वो नजर आता नही मुझको,
कौन मुझ में बोलता रहता।
तेरे घर का क्या पता अक्सर,
मैं हवा से पूछता रहता।
कुछ करे तो क्या यही सोचे,
खून अक्सर खोलता रहता।
देखता कब भार मैं अपना,
हर किसी को तोलता रहता।"रैना"
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