Sunday, April 14, 2013

kon kitne pani me

दोस्तों लो फिर मेरी अपनी बात

कोन कितने पानी में इस की खबर रखता है,
आज का इंसान दुसरे की जेब पे नजर रखता है,
देर हो गई देर हो गई ये अलापता राग अक्सर,
बेसबर हो गया मन में जरा भी न सबर रखता है।
मर मर के जीने की अब आदत हो गई इसकी,
मौत आने से पहले खोद के अपनी कब्र रखता है।
हकीकत में कुछ करने की अक्सर कमी रहती,
मगर बातों का तो बसा के इक नगर रखता है।
कड़कती धुप में बैठे गे जिसकी छाया में कभी,
बेशक "रैना"बचा के इक ऐसा शजर रखता है।"रैना"

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