Sunday, April 28, 2013

mere kuchh nhi tha likhne ke liye


दोस्तों इस रचना को पढ़ कर
 सोच विचार जरुर करना 

मेरे पास कुछ नही था लिखने के लिये,
दोस्तों ने पर दिये मुझे उड़ने के लिये।
बेशक मैं भी बहुत कुछ पा लेता यारों,
मेरा सिर माना नही झुकने के लिये।
वो मेरे घर आया था रहने को लेकिन,
मैं ही उसे कह न पाया रुकने के लिये।
तेज हवा अक्सर धमकाती डराती है,
चिराग तो तैयार नही बुझने के लिये।
बच्चा लड़ाई कर के घर दौड़ आया,
माँ का आंचल काफी छिपने के लिये।
दुश्मनों भारत माँ की तरफ मत देखो,
लाखों तैयार दीवाने मर मिटने के लिये।
इन नेताओं की बातों में मत आना,
ये हाथी के दन्त सिर्फ दिखने के लिये।
"रैना"चलता जा तू नेक राह पे सदा,
रास्ता बना ले तू उसे मिलने के लिये।"रैना"



 





No comments:

Post a Comment