दोस्तों हम सब की अपनी ग़ज़ल
टूट कर भी टूटा नही हूं,
मैं सितारा,शीशा नही हूं।
सच गवाही देता मिरी तो,
बोल मिठ्ठा झूठा नही हूं।
पास मयकश के बैठ लेता,
मैं कभी मय पीता नही हूं।
जिन्दगी जीने की कला है,
आँख नम कर जीता नही हूं।
मैं कमाई तो नेक करता,
पाप का धन छूता नही हूं।
है फ़िक्र "रैना"की मुझे भी,
यार को मैं भूला नही हूं।"रैना"
टूट कर भी टूटा नही हूं,
मैं सितारा,शीशा नही हूं।
सच गवाही देता मिरी तो,
बोल मिठ्ठा झूठा नही हूं।
पास मयकश के बैठ लेता,
मैं कभी मय पीता नही हूं।
जिन्दगी जीने की कला है,
आँख नम कर जीता नही हूं।
मैं कमाई तो नेक करता,
पाप का धन छूता नही हूं।
है फ़िक्र "रैना"की मुझे भी,
यार को मैं भूला नही हूं।"रैना"
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